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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी

Thursday, 20 June 2024


नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव

केसरी धोती पटका एवं श्रीमस्तक पर दुमाला पर सेहरा के शृंगार


दिन दुल्हे तेरे सोहे शीश सुहावनो ।

मणि मोतिन को शेहरो सोहे बसियो मन मेरे ।।१।।

मुख पून्यो को चंद है मुक्ताहल तारे ।

उन के नयन चकोर हैं, ऐ सब देखन हारे ।।२।।

पिय बने प्यारि, अति सुंदर बनि आय ।

परम आगरी रूप नागरी ऐ सब देखन आई ।।३।।

दुलहनि रेन सुहाग की, दुलह सुंदर वर पायो ।

श्रीनंदलाल को शेहरो, जन परमानंद यश गायो ।।४।।


विशेष – आज नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री गिरिधारीजी महाराज श्री (वि.सं.१८९९) का उत्सव है. आप सभी को नित्यलीलास्थ तिलकायत श्री (वीर) गिरधारी जी महाराज के उत्सव की बधाई


प्रभु को नियम के वस्त्र और श्रृंगार - केसरी धोती, पटका व दुमाला के ऊपर सेहरा धराया जाता है.


श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में खंडरा प्रकार अरोगाये जाते हैं.


खंडरा प्रकार प्रसिद्द गुजराती व्यंजन खांडवी का ही रूप है. इसे सिद्ध करने की प्रक्रिया व बहुत हद तक उससे प्रेरित है, केवल खंडरा सिद्ध कर उन्हें घी में तला जाता है फिर अलग से घी में हींग-जीरा का छौंक लगाकर खांड का रस पधराया जाता है और तले खंडरा उसमें पधराकर थोडा नमक डाला जाता है. प्रभु सेवा में इस सामग्री को खंडरा की कढ़ी कहा जाता है और यह सामग्री वर्ष में कई बार बड़े उत्सवों पर व विशेषकर अन्नकूट पर अरोगायी जाती है.


भोग समय फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा अरोगाया जाता है.


राजभोग दर्शन -


कीर्तन – (राग : सारंग)


आज बने गिरिधारी दूलहे,

चंदन की तन खोर करें ।।

सकल सिंगार बने मोतीनके,

बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।

खासा को कटि बन्यो पिछोरा,

मोतीन सहेरो शीश धरें ।।

राते नयन बंक अनियारे,

चंचल खंजन मान हरें ।।२।।

ठाडे कमल फिराजत,

गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।

सूरदास मदन मोहन मिल,

राधासों रति केलि करें ।।३।।


बधाई-


केसरकी धोती पहेरे केसरी उपरना ओढ़े

तिलक मुद्रा धर बैठे श्री लक्ष्मण भट्ट धाम l

जन्मधोस जान जान अद्भुत रूचि मान मान,

नखशिखकी शोभा ऊपर वारों कोटि काम ll 1 ll

सुन्दरताई निकाई तेज प्रताप अतुल ताई

आसपास युवतीजन करत है गुणगान l

‘पद्मनाभ’ प्रभु विलोक गिरिवरधर वागधीस

यह अवसर जे हुते ते महा भाग्यवान ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में केसरी मलमल की, उत्सव के कमल के काम वाली एवं रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की गयी है.


वस्त्र – आज श्रीजी को केसरी मलमल की धोती एवं राजशाही पटका धराया गया है. दोनों वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य से दो अंगुल नीचे (घुटने तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया गया है. हीरा व मोती के मिलवा उत्सव के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मोती का सेहरा पर पांच हीरा के फूल एवं बायीं ओर शीशफूल धराये हैं. दायीं ओर सेहरे की हीरे की चोटी धरायी गयी है. मोती की बग्घी धरायी जाती है. श्रीकर्ण में हीरा के मयूराकृति कुंडल धराये हैं.

श्रीकंठ में कली आदि सब माला धरायी जाती है. आज हांस-त्रवल नहीं धराये जाते.

श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर कलात्मक मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में दो कमल की कमलछड़ी, जड़ाव मोती के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट ऊष्णकाल का, गोटी राग-रंग की, आरसी श्रृंगार में पीले खंड की व राजभोग में सोने की डांडी की आती है.


स्नान का जल भरने जाना एवं स्नान के जल का अधिवासन


आज प्रातः श्रृंगार उपरांत श्रीजी को ग्वाल भोग धरकर चिरंजीवी श्री विशालबावा, श्रीजी व श्रीनवनीतप्रियाजी के मुखियाजी, भीतरिया व अन्य सेवकों, वैष्णवजनों के साथ श्रीजी मन्दिर के दक्षिणी भाग में मोतीमहल के नीचे स्थित भीतरली बावड़ी पर ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल लेने पधारेंगे.


कुछ वर्ष पूर्व तक ज्येष्ठाभिषेक के लिए जल मन्दिर की पश्चिम दिशा में कुछ दूरी पर गणगौर घाट में स्थित चूवा वाली बावड़ियों से लाया जाता था परन्तु अब वहां का जल प्रभुसेवा में प्रयुक्त होने योग्य न होने के कारण पिछले तीन वर्षों से भीतरली बावड़ी से ही जल लिया जाता है.


स्वर्ण व रजत पात्रों में जल भर कर लाया जायेगा और शयन के समय के इसका अधिवासन किया जायेगा.


पुष्टिमार्ग में सर्व वस्तु भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से अधिवासन अर्थात जल की गागर का चंदन आदि से पूजन कर भोग धरकर उसमें देवत्व स्थापित कर बालक की रक्षा हेतु अधिवासन किया जाता है.

अधिवासन में जल की गागर भरकर उसमें कदम्ब, कमल, गुलाब, जूही, रायबेली, मोगरा की कली, तुलसी, निवारा की कली आदि आठ प्रकार के पुष्पों चंदन, केशर, बरास, गुलाबजल, यमुनाजल, आदि पधराये जाते हैं.

अधिवासन के समय यह संकल्प किया जाता है.

“श्री भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्च: स्नानयात्रोत्सवार्थं ज्येष्ठाभिषेकार्थं जलाधिवासनं अहं करिष्ये l”


कल ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल मंगला समय प्रभु को इस जल के 108 धड़ों (स्वर्ण पात्र) से प्रभु का ज्येष्ठाभिषेक कराया जायेगा.


सवा लाख आमों का भोग लगाया जायेगा.

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