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व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी

Wednesday, 19 June 2024


गुलाबी मलमल का आड़बंद एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर मोरपंख के दोहरे क़तरा के शृंगार


राजभोग दर्शन


कीर्तन – (राग : सारंग)


शीतल उसीर गृह छिरक्यों गुलाबनीर

परिमल पाटीर घनसार बरसत हैं ।

सेज सजी पत्रणकी अतरसो तर कीनी

अगरजा अनूप अंग मोद दरसत हैं ॥१॥

बीजना बियाँर सीरी छूटत फुहारें नीके

मानो घन नहैनि नहैनि फ़ूही बरसत हैं ।

चतुर बिहारी प्यारी रस सों विलास करे

जेठमास हेमंत ऋतु सरस दरसत हैं ॥२॥


साज – आज श्रीजी में गुलाबी रंग की मलमल रूपहली ज़री की किनारी वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को गुलाबी मलमल का रूपहली ज़री की किनारी से सुसज्जित आड़बंद धराया जाता है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.

मोती के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी रंग की गोल पाग पर के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख के दोहरे क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मोती के एक जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झीनें लहरियाँ के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट व गोटी ऊष्णकाल के आते है.

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