व्रज - ज्येष्ठ शुक्ल सप्तमी
Thursday, 13 June 2024
चंदनी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा के शृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : सारंग)
पनिया न जेहोरी आली नंदनंदन मेरी मटुकी झटकी के पटकी l
ठीक दुपहरी में अटकी कुंजनमे कोऊ न जाने मेरे घटकी ll 1 ll
कहारी करो कछु बस नहीं मेरो नागर नट सों अटकी l
‘नंददास’ प्रभु की छबि निरखत सुधि न रही पनघट की ll 2 ll
साज – आज श्रीजी में चंदनी रंग की मलमल की रुपहली तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र – आज प्रभु को चंदनी मलमल का पिछोड़ा धराया जाता हैं. सभी वस्त्र रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं.
श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) ऊष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर चंदनी रंग की छज्जेदार पाग पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
श्रीकर्ण में दो जोड़ी मोती के कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में कमलछड़ी, चाँदी के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट ऊष्णकाल का व गोटी हक़ीक की आती है.
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