व्रज – पौष कृष्ण चतुर्दशी
Sunday, 29 December 2024
पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया ।
कनक छाप तापर धरी झीनी एक तनैया ।।१।।
लाल इजार चुनायकी और जरकसी चीरा ।
पहोंची रत्न जरायकी ऊर राजत हीरा ।।२।।
ठाडी निरख यशोमति फूली अंग न समैया ।
काजर ले बिंदुका दियो बृजजन मुसकैया ।।३।।
नंदबाबा मुरली दई कह्यो ऐसै बजैया ।
जोई सुने जाको मन हरे परमानन्द बलजैया ।।४।।
आज उपरोक्त पद ‘पीताम्बर को चोलना’ के आधार पर होने वाले विशिष्ट श्रूँगार के दर्शन का आनंद ले
विशेष – जिस प्रकार जन्माष्टमी के पश्चात भाद्रपद कृष्ण एकादशी से अमावस्या तक बाल-लीला के पांच श्रृंगार धराये जाते हैं उसी प्रकार श्री गुसांईजी के उत्सव के पश्चात चार श्रृंगार बाल-लीला के धराये जाते हैं.
गत एकादशी के दिन कुल्हे का प्रथम श्रृंगार धराया गया उसी श्रृंखला में आज ‘पीताम्बर को चोलना’ का दूसरा बाल-लीला का श्रृंगार धराया जाएगा जो कि उपरोक्त कीर्तन के आधार पर धराया जाता है.
‘पीताम्बर को चोलना पहरावत मैया, जोई सुने ताको मन हरे परमानंद बलि जैया.’
दिनभर बाल लीला के कीर्तन गाये जाते हैं. बाल-लीला का आगामी श्रृंगार तिलकायत श्री दामोदरलालजी के उत्सव के दिन (पौष शुक्ल षष्ठी) व चौथा श्रृंगार माघ कृष्ण अमावस्या के दिन धराया जाता है.
आज के श्रृंगार में विशेष यह है कि आज लाल छापा की सूथन एवं पीला छापा का सुनहरी किनारी का घेरदार वागा धराया जाता है. सामान्यतया सूथन एवं घेरदार वागा एक ही रंग के धराये जाते हैं.
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आसावरी)
माई मीठे हरिजु के बोलना ।
पांय पैंजनी रुनझुन बाजे आंगन आंगन डोलना ।।१।।
काजर तिलक कंठ कठुला पीतांबर कौ चोलना ।
परमानंददास को ठाकुर गोपी झुलावे झोलना ।।२।।
साज – आज श्रीजी में मेघश्याम रंग की, सुनहरी सुरमा-सितारा के कशीदे से चित्रित मोर-मोरनियों के भरतकाम (Work) वाली अत्यंत आकर्षक पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – आज श्रीजी को लाल छापा का सूथन, पीले रंग की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित चोली एवं घेरदार वागा धराया जाता है. मोजाजी सुनहरी ज़र्री के एवं ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज मध्य का (घुटने तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री की पाग (चीरा) के ऊपर सिरपैंच, लूम तुर्री तथा जमाव (नागफणी) का कतरा एवं बायीं शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में लोलकबंदी-लड़ वाले कर्णफूल धराये जाते हैं.
कड़ा, हस्त, सांखला, हांस, त्रवल,एक हालरा, बघनखा सभी धराये जाते हैं. कली की माला धरायी जाती है.
रंग-बिरंगे पुष्पों की सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.
श्रीहस्त में हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.
पट पिला एवं गोटी सोना की चिड़िया की धरायी जाती हैं.
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