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व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – पौष शुक्ल अष्टमी

Tuesday, 07 January 2025


जुगल वर आवत है गठजोरें ।

संग शोभित वृषभान नंदिनी ललितादिक तृण तोरे ।।१।।

शीश सेहरो बन्यो लालकें, निरख हरख चितचोरे ।

निरख निरख बलजाय गदाधर छबि न बढी कछु थोरे ।।२।।


शीतकाल के सेहरा का द्वितीय शृंगार


शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को खांड़ के रस की मीठी लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.


आज श्रीजी को पतंगी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


मोरको सिर मुकुट बन्यो मोर ही की माला l

दुलहनसि राधाजु दुल्हे हो नंदलाला ll 1 ll

बचन रचन चार हसि गावत व्रजबाला l

घोंघी के प्रभु राजत हें मंडप गोपाला ll 2 ll


साज – श्रीजी में आज पतंगी रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी विवाह के सेहरा के शृंगार में एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विराजमान हैं और गोपियाँ विवाह के मंगल गीत का गान साज सहित कर रही हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज पतंगी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं पतंगी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. पतंगी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरा मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर पतंगी रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.

श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है.

लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक मीना के) धराये जाते हैं.

पट पतंगी एवं गोटी राग रंग की आती हैं.



संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं.

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