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व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – पौष शुक्ल द्वादशी

Saturday, 11 January 2025


सभी सनातनियों को अयोध्याजी में श्रीरामलला की प्रतिष्ठा की प्रथम वर्षगांठ की मंगल बधाई


भोग श्रृंगार यशोदा मैया श्री बिटठ्लनाथ के हाथ को भावे ।

नीके न्हवाय श्रृंगार करतहे आछी रूचिसो मोहि पाग बॅधावे ।।१।।

ताते सदाहो उहाहि रहत हो तू डर माखन दुध छिपावे ।

छीतस्वामी गिरिधरन श्री बिटठ्ल निरख नयना त्रैताप नसावे ।।२।।


शीतकाल की चतुर्थ चौकी के वस्त्र श्रृंगार निश्चित हैं. आज प्रभु को श्याम खीनखाब के चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर जड़ाव के ग्वाल-पगा के ऊपर सादी मोर चंद्रिका का विशिष्ट श्रृंगार धराया जाता है.


सामान्यतया श्रीमस्तक पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरें तब कर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं और छोटा (कमर तक) अथवा मध्य का (घुटनों तक) श्रृंगार धराया जाता है.

आज के श्रृंगार की विशिष्टता यह है कि वर्ष में केवल आज मोर-चंद्रिका के साथ मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं और वनमाला का (चरणारविन्द तक) श्रृंगार धराया जाता है.


आज श्रीजी को विशेष रूप से गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में तवापूड़ी अरोगायी जाती है.


श्रीजी में पांचवी और अंतिम चौकी आगामी बसंत पंचमी के एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल चतुर्थी को गुड़कल की अरोगायी जाएगी.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


गोवर्धन की शिखर सांवरो बोलत धौरी धेनु l

पीत बसन सिर मोर के चंदोवा धरि मोहन मुख बेनु ll 1 ll

बनजु जात नवचित्र किये अंग ग्वालबाल संग सेनु l

‘कृष्णदास’ बलि बलि यह लीला पीवत धैया मथमथ फेनु ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में श्याम रंग की खीनखाब की बड़े बूटा की पिछवाई धरायी जाती है जो कि लाल रंग की खीनखाब की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्याम रंग की खीनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा लाल रंग का पटका एवं टकमां हीरा के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती तथा जड़ाव सोने के आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर हीरा एवं माणक का जड़ाऊ ग्वाल पगा के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

त्रवल नहीं धराया जाता हैं.हीरा की बघ्घी धरायी जाती हैं.

एक कली की माला धरायी जाती हैं.

सफेद एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में विट्ठलेशजी के वेणुजी एवं वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट काशी का व गोटी कूदती हुई बाघ-बकरी की आती है.


आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती हैं.

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