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व्रज – फाल्गुन कृष्ण अष्टमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – फाल्गुन कृष्ण अष्टमी

Monday, 04 March 2024

सेहरा के शृंगार

आज श्रीजी को केसरी रंग का सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा. श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर मीना का सेहरा धराया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

देखो राधा माधो,सरस जोर,

खेलत बसंत पिय नवल किशोर।।ध्रु।

ईत हलधर संग,समस्त बाल।।

मधि नायक सोहे नंदलाल।।

उत जुवती जूथ,अदभूत रूप।।

मधि नायक सोहें,स्यामा अनूप।।१।।

बहोरि निकसि चले जमुनातीर,।।

मानों रति नायक जात धीर।।

देखत रति नायक बने जाय।।

संग ऋतु बसंत ले परत पाय।।२।।

बाजत ताल,मृदंग तूर,।।

पुनि भेरि निसान रवाब भूर।।

डफ सहनाई,झांझ ढोल।।

हसत परस्पर करत बोल।।३।।

जाई जूही,चंपक रायवेलि।।

रसिक सखन में करत केलि।।४।।

ब्रज बाढ्यो कोतिक अनंत।।

सुंदरि सब मिलि कियो मंत।।

तुम नंदनंदन को पकरि लेहु।।

सखी संकरषन को माखेहु।।५।।

तब नवलवधू कींनो उपाई।।

चहुँ दिशते सब चली धाई।।

श्रीराधा पकरि स्याम कों लाई।।

सखी संकरषन ,जिन भाजिपाई।।६।

अहो संकरषन जू सुनो बात बात।।

नंदलाल छांडि,तुम कहां जात।।

दे गारी बोहो विधि अनेक।।

तब हलधर पकरे सखी अनेक।।७।।

अंजन हलधर नेन दीन।।

कुंकुम मुख मंजन जू किन।।

हरधवजू फगवा आनी देहु।।

जुम कमल नेन कों छुडाई लेहु।।८।।

जो मांग्यो सो़ं फगूआ दीन ।।

नवललाल संग केलि कौन हसत,

खेलत चले अपने धाम।।

व्रज युवती भई पूरन काम।।९।।

नंदरानी ठाडी पोरि द्वार।।

नोछावरि करि देत वार ।।

वृषभान सुता संग रसिकराय।।

जन माणिक चंद बलिहारि जाय।।१०।।

साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर राजभोग में गुलाल से चवरी मांडी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) फागुण का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर फ़ीरोज़ा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में दो जोड़ी मीना मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.

आज अक्काजी वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लाल मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुण की आती हैं.

संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं.


दुमाला रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

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