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व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन शुक्ल दशमी

Sunday, 09 March 2025


आवत लाल गुपाल लिये सूने,

मग मिली इक नार नवीनी।

त्यौं 'रसखानि' लगाई हिय भट् ,

मौज कियौ मनमांहि अधीनी।।

सारी फटी सुकुमारी हटी अंगिया ,

दरकी सरकी रंगभीनी।

गाल गुलाल लगाइ कै अंक ,

रिझाई बिदा कर दीनी।।


आप (तिलकायत श्री) के द्वादशी के श्रृंगार


फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रभु को विशिष्ट श्रृंगार धराये जाने प्रारंभ हो गये हैं. इन्हें ‘आपके श्रृंगार’ अथवा ‘तिलकायत श्री के श्रृंगार’ कहा जाता है. ये शृंगार द्वितीया पाट तक धराये जायेंगे. ‘आपके श्रृंगार’ डोलोत्सव के अलावा जन्माष्टमी एवं दीपावली के पूर्व भी धराये जाते हैं.इसी शृंखला में आज चतुर्दशी का श्रृंगार धराया जाता हैं.


सभी समय की झारीजी यमुनाजल से भरी जाएगी. दो समय आरती थाली में की जाएगी.


आज नियम का श्रृंगार है जिसमें श्वेत लाल छींट के बसंत के घेरदार वागा और श्रीमस्तक पर चीला वाली गोल पाग एवं मोर का सुनहरी फ़ोंदना वाला कतरा धराया जाता हैं.


फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी.


इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में घेवर अरोगाया जाता हैं.


राजभोग में इन दिनों भारी खेल होता है. पिछवाई पूरी गुलाल से भरी जाती है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है.

प्रभु की कमर पर एक पोटली गुलाल की बांधी जाती है. ठोड़ी (चिबुक) पर तीन बिंदी बनायी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : जेतश्री / हिंडोल)


झुलत युग कमनीय किशोर सखी चहुँ ओर झुलावत डोल l

ऊंची ध्वनि सुन चकृत होत मन सब मिल गावत राग हिंडोल ll 1 ll

एक वेष एक वयस एक सम नव तरुनि हरनी दग लोल l

भांत भांत कंचुकी कसे तन वरन वरन पहेरे वलिचोल ll 2 ll

वन उपवन द्रुमवेळी प्रफुल्लित अंबमोर पिकन कर कलोल l

तैसेही स्वर गावत व्रज वनिता झुमक देत लेत मन मोल ll 3 ll

सकल सुगंध सवार अरगजा आई अपने अपने टोल l

तक तकजु पिचकाईन छिरकत एक भरे भर कनक कचोल ll 4 ll.....अपूर्ण


साज - आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से कलात्मक खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लाल छींट का बसंत का सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. कटि-पटका धराया जाता है जिसका एक छोर आगे व एक बगल में होता है. ठाडे वस्त्र गहरे हरे रंग के धराये जाते हैं.

सभी वस्त्र दोहरी रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित होते हैं और सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि को छांटकर कलात्मक रूप से खेल किया जाता है. प्रभु के कपोल पर भी गुलाल, अबीर लगाये जाते हैं व दाढ़ी भी रंगी जाती है.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर मच्छीघाट का सुनहरी कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में आज त्रवल नहीं धराये जाते वहीँ कंठी धरायी जाती है.

पिले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का, गोटी चांदी की आती है.

आरसी शृंगार में बड़ी डांडी की एवं राजभोग में छोटी डांडी की आती है.

भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के आभरण बड़े कर छेड़ान के (छोटे) आभरण धराये जाते हैं. शयन दर्शन में श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराया जाता है.

 
 
 

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