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व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - फाल्गुन शुक्ल नवमी

Monday, 18 March 2024

पीले लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर जमाव के क़तरा के शृंगार

आज राजभोग में श्रीजी की कटि में एक गुलाल की पोटली बांधी जाती हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

आई ऋतु चहूँदिस फूले द्रुम कानन कोकिला समूह मिलि गावत वसंतहि।

मधुप गुंजारत मिलत सप्तसुर भयो है हुलास तन मन सब जंतहि॥

मुदित रसिक जन उमगि भरे हैं नहिं पावत मन्मथ सुख अंतहि।

कुंभनदास स्वामिनी बेगि चलि यह समें मिलि गिरिधर नव कंतहि॥

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को पीले लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी को फ़ागण का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, जमाव का क़तरा लूम तुर्रा रूपहरी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं.

आज श्रीकंठ में अक्काजी की एक माला धरायी जाती हैं.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्याम मीना के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.

संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.


लूम तुर्रा रूपहरी धराये रहे.

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