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व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या(प्रथम) (कुशग्रहणी अमावस्या)(सोमवती अमावस्या)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या(प्रथम) (कुशग्रहणी अमावस्या)(सोमवती अमावस्या)

Monday, 02 September 2024


मल्लकाछ-टिपारा एवं पटका के शृंगार


मल्लकाछ शब्द दो शब्दों (मल्ल एवं कच्छ) से बना है. ये एक विशेष परिधान है जो आम तौर पर पहलवान मल्ल (कुश्ती) के समय पहना करते हैं. यह श्रृंगार पराक्रमी प्रभु को वीर-रस की भावना से धराया जाता है.


आज कीर्तनों में माखनचोरी एवं गोपियों के उलाहने के पद गाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आशावरी)


तेरे लाल मेरो माखन खायो l

भर दुपहरी देखि घर सूनो ढोरि ढंढोरि अबहि घरु आयो ll 1 ll

खोल किंवार पैठी मंदिरमे सब दधि अपने सखनि खवायो l

छीके हौ ते चढ़ी ऊखल पर अनभावत धरनी ढरकायो ll 2 ll

नित्यप्रति हानि कहां लो सहिये ऐ ढोटा जु भले ढंग लायो l

‘नंददास’ प्रभु तुम बरजो हो पूत अनोखो तैं हि जायो ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में माखन-चोरी लीला के चित्रांकन वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल सफ़ेद लहरियाँ का मल्लकाछ एवं पटका धराया जाता है. इस श्रृंगार को मल्लकाछ-टिपारा का श्रृंगार कहा जाता है. ठाड़े वस्त्र स्याम रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छेड़ान (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्वआभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर टिपारा का साज धराया जाता है जिसमें लाल सफ़ेद टिपारे के ऊपर मध्य में मोरशिखा, दोनों ओर दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हरे मीना के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं. चोटीजी नहीं धराई जाती हैं.

श्री कंठ में कमल माला एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.


पट लाल एवं गोटी चाँदी की बाघ-बकरी की आती हैं.

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