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व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी

Monday, 26 August 2024


सभी वैष्णवजन को प्रभु के आगमन की ख़ूब ख़ूब बधाई


जय श्री कृष्ण


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी


सेवाक्रम – आज का उत्सव महा-महोत्सव कहलाता है. पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के लिए यह महोत्सव सबसे अधिक महत्व का होता है.


बीच में एक बात...


कुछ वैष्णवों ने पूछा था कि प्रभु का जन्म रात्रि को होता है तो पंचामृत स्नान प्रातः क्यों होता है ?


-आज प्रभु को उनके जन्मदिन के महात्म्य स्वरूप यशोदोत्संगलालित स्वरूप के आधार रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण के रूप में पंचामृत स्नान कराया जाता है.

रात्रि को प्रभु जन्म उपरांत तो श्री बालकृष्णलालजी के स्वरुप को पंचामृत होता है.


कुछ का प्रश्न यह भी था कि प्रभु जन्म के शुभ दिन फलाहार करना कैसे उचित है ?


- पुष्टिमार्ग में चारों जयंतियों (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, श्रीरामनवमी, श्री वामन द्वादशी व श्री नृसिंह जयंती) के दिन फलाहार किया जाता है.

इसका भाव यह है कि जब हम प्रभु के सम्मुख जाएँ अथवा प्रभु हमारे घर पधारें तब तन, मन से शुद्ध हों और आयुर्वेद में भी कहा गया है कि उपवास अथवा फलाहार से तन व मन की शुद्धि होती है.


पंचामृत को दर्शन के पश्चात् श्रीजी के पातलघर से सभी वैष्णवों को वितरित किया जाता है जिसे प्रभु प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.


श्रृंगार काफी देर से लगभग 9.30 बजे खुलते हैं क्योंकि पंचामृत स्नान के पश्चात प्रभु स्वरुप अत्यधिक चिकना हो जाता है. साथ ही आज का श्रृंगार, आभरण आदि भी अत्यधिक भारी में भारी होते हैं (जिनका वर्णन आगे इसी post में है).


श्रृंगार दर्शन में श्रीजी को तिलक एवं अक्षत किया जाता है, भेंट रखी जाती है. इस दौरान शंख, झालर, धंटा आदि बजाये जाते हैं और वैष्णव मंगलगान गाते हैं.

प्रभु के सम्मुख हल्दी से चौक पुराया जाता है. राई, लोन से प्रभु की नज़र उतारी जाती है.


श्रीजी के मुख्य पंड्याजी वर्षपत्र पढ़ते हैं.


आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त चन्द्रकला एवं केशरी बासोंदी (रबड़ी) की हांड़ी, चार प्रकार के फलों के मीठा अरोगाये जाते हैं.


राजभोग में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी भोग में पांचभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात और वड़ी-भात) आरोगाये जाते हैं. राजभोग दर्शन लगभग 12.30 को खुलते हैं.


संध्या आरती में जयंती के फलाहार के रूप में मलाई की बासोंदी और खोवा और फीका में घी में तला बीज-चालनी का सूखा मेवा आरोगाया जाता है.


संध्या-आरती दर्शन लगभग रात्रि 7.30 बजे खुलते हैं और लगभग रात्रि 8.30 बजे से जागरण के दर्शन होते हैं जो कि रात्रि लगभग 11.45 तक खुले रहते हैं.


तदुपरांत रात्रि 12 बजे भीतर शंख, झालर, घंटानाद की ध्वनि के मध्य प्रभु का जन्म होता है.


प्रभु जन्म के समय नाथद्वारा नगर के रिसाला चौक में प्रभु को 21 तोपों की सलामी दी जाती है. इस अद्भुत परंपरा के साक्षी बनने के लिये प्रतिवर्ष वहां हजारों की संख्या में नगरवासी व पर्यटक एकत्र होते हैं.


प्रभु सम्मुख विराजित श्री बालकृष्णलालजी पंचामृत स्नान होता है, महाभोग धरा जाता है जिसमें पंजीरी के लड्डू, मनोर (इलायची-जलेबी) के लड्डू, मेवाबाटी, केशरिया घेवर, केशरिया चन्द्रकला, दूधघर में सिद्ध मावे के पेड़ा-बर्फी, दूधपूड़ी (मलाई-पूड़ी), केशर युक्त बासोंदी, जीरा युक्त दही, केसरी-सफेद मावे की गुंजिया, श्रीखंड-वड़ी, घी में तला हुआ बीज-चालनी का सूखा मेवा, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा, विविध प्रकार के फल आदि अरोगाये जाते हैं.

महाभोग की सखड़ी में राजभोग की भांति सखड़ी की सामग्री, पांचभात, मीठी सेव, केसरी पेठा आदि अरोगाये जाते हैं.


वैष्णवों के घर श्री ठाकुरजी को शयन पश्चात पोढ़ा दिया जाता है और जागरण नहीं किया जाता. नवमी के दिन श्री ठाकुरजी को जगाकर, मंगल भोग धर कर, सरा कर श्रृंगार किया जाता है. राजभोग में अदकी सामग्रियां धर कर पलने में झूला कर नन्दोत्सव मनाया जाता है परन्तु मंदिरों – हवेलियों आदि में अष्टमी के रात्रि को महाभोग, नवमी के दिवस प्रातः नन्दोत्सव, इसके पश्चात मंगला, श्रृंगार एवं राजभोग आदि का सेवाक्रम किया जाता है.

इस उत्सव में सेवाक्रम मंदिरों में और वैष्णवों के घरों में थोड़ा अलग-अलग होता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


ऐ री ऐ आज नंदराय के आनंद भयो l

नाचत गोपी करत कुलाहल मंगल चार ठयो ll 1 ll

राती पीरी चोली पहेरे नौतन झुमक सारी l

चोवा चंदन अंग लगावे सेंदुर मांग संवारी ll 2 ll

माखन दूध दह्यो भरिभाजन सकल ग्वाल ले आये l

बाजत बेनु पखावज महुवरि गावति गीत सुहाये ll 3 ll

हरद दूब अक्षत दधि कुंकुम आँगन बाढ़ी कीच l

हसत परस्पर प्रेम मुदित मन लाग लाग भुज बीच ll 4 ll

चहुँ वेद ध्वनि करत महामुनि पंचशब्द ढ़म ढ़ोल l

‘परमानंद’ बढ्यो गोकुलमे आनंद हृदय कलोल ll 5 ll


साज - श्रीजी में आज लाल दरियाई की बड़े लप्पा की सुनहरी ज़री की तुईलैस के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर सफेद मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग की जामदानी की रुपहली ज़री की तुईलैस से सुसज्जित चाकदार एवं चोली धरायी जाती है. सूथन रेशम का लाल रंग का सुनहरी छापा का होता है. लाल रंग का पीताम्बर चौखटे के ऊपर धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी से भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के तीन जोड़ी के हीरा, पन्ना एवं माणक नवरत्नों के आभरण धराये जाते हैं.

नीचे तेरह पदक ऊपर हीरा, पन्ना, माणक एवं मोती के हार, माला आदि धराये जाते हैं.

हांस, त्रवल, बघनखा,दो हालरा आदि धराये जाते हैं. वैजयंतीमाला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग की कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर जमाव का शीशफूल धराया जाता है. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मानक की चोटीजी (शिखा) धरायी जाती है.

पीठिका के ऊपर प्राचीन हीरे-मोती के जड़ाव का चौखटा धराया जाता है. प्रभु के मुखारविंद पर केशर से कपोलपत्र किये जाते हैं.

श्रीकंठ में कली,कस्तूरी आदि की माला आती हैं.

पीले एवं श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरे के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते है.

पट एवं गोटी जड़ाऊ स्वर्ण की आते हैं.

आरसी शृंगार में जड़ाऊ स्वर्ण की व राजभोग में उस्ताजी की बड़ी दिखाई जाती है.


जागरण कीर्तन – (राग : मालव)


पद्म धर्यो जन ताप निवारण ।

चक्र सुदर्शन धर्यो कमल कर भक्तनकी रक्षा के कारण ॥१॥

शंख धर्यो रिपु उदर विदारन गदाधरी दुष्टन संहारन ।

चारौ भुजा चारौ आयुध धरे नारायण भुव भार उतारन ॥२॥

दीनानाथ दयाल जगत गुरू आरति हरन चिंतामनि ।


परमानंद दासकौ ठाकुर यह औसर छांडो जिन किनि ॥३॥

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