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व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा

Monday, 23 August 2021


स्वर्णयुगदाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का प्राकट्योत्सव, स्वर्ण(हेम) हिंडोलना


विशेष – आज नाथद्वारा के स्वर्णयुग दाता नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का उत्सव है.


जीवन परिचय - आज के उत्सवनायक नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज का जन्म श्री गिरिधारीजी के यहाँ विक्रम संवत 1917 में हुआ. विक्रम संवत 1927 में नाथद्वारा में आपका उपनयन संस्कार हुआ. विक्रम संवत 1932 में आप तिलकायत पद पर आसीन हुए.


श्रीजी सेवा एवं नाथद्वारा के अभ्युदय में आपश्री का अग्रणी योगदान रहा. आपश्री का समय नाथद्वारा का स्वर्णयुग कहा जाता है.

आपश्री के अथक प्रयासों से व्रज में गौवध बंद हुआ एवं कई गौशालाएँ खोली गयीं. आपश्री ने श्रीजी के विविध मनोरथ किये. सारंगी वाध्य कीर्तनों में बजाना शुरू हुआ.

बारह मास के आभूषण, वस्त्र, श्रृंगार, कीर्तन आदि के नियमों की प्रणालिका पुनः परिभाषित की गयी.


श्रीजी के लिए सोने का बंगला, सोने का पलना एवं सोने का हिंडोलना बनवाया. जडाऊ साज, जडाऊ चौखटा, जड़ाव के मुकुट, कांच, चन्दन आदि के बंगले, दीवालगरी, पिछवाई एवं ऋतु अनुसार सुन्दर कलात्मक साज आदि सिद्ध कराये.


वर्षपर्यंत श्रीजी के अभ्यंग, श्रृंगार एवं सामग्री निश्चित की. इस प्रकार आपने सेवा में प्रीतिपूर्वक प्रभु के सुख के विचार से भोग, राग एवं श्रृंगार की वृद्धि की.

नाथद्वारा नगर के अभ्युदय में भी आपका विशेष योगदान रहा है. नाथद्वारा में बनास नदी के ऊपर पुल, हायर सेकेंडरी स्कूल, हॉस्पिटल, धर्मशालाएं, विभिन्न बाग़-बगीचे, औषधालय, गोवर्धन मंडान, श्री नवनीतप्रियाजी का बगीचा, बैठक का बगीचा आदि बनवाये.


आपने श्री जगन्नाथ पुरी में महाप्रभुजी की बैठक प्रकट कर सेवा व्यवस्था प्रारंभ की. विक्रम संवत 1990 में अश्विन शुक्ल द्वितीया के दिन आपने नित्यलीला में प्रवेश किया.


सभी वैष्णवों को नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री के उत्सव की अनेकानेक बधाईयाँ


श्रीजी का सेवाक्रम - उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.


दिन भर सभी समय यमुनाजल की झारीजी आती है. चारों समां (मंगला, राजभोग संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है.

गेंद, चौगान, दीवाला आदि सभी सोने के आते हैं. मुड्ढा, पेटी, दीवालगिरी का साज केसरी आता है वहीँ तकिया लाल काम (work) वाले आते हैं.


आज श्रीजी को नियम से मुकुट-काछनी का श्रृंगार धराया जायेगा.


आज गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से श्रीजी को केशरयुक्त जलेबी के टूक एवं दूधघर में सिद्ध की गयी केशरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.


राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता, सखड़ी में मीठी सेव, केसरी पेठा व छहभात (मेवा-भात, दही-भात, राई-भात, श्रीखंड-भात, वड़ी-भात और नारंगी भात) अरोगाये जाते हैं.


भोग समय अरोगाये जाने वाले फीका के स्थान पर घी में तले बीज चालनी के सूखे मेवे अरोगाये जाते हैं.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


सब ग्वाल नाचे गोपी गावे l प्रेम मगन कछु कहत न आवे ll 1 ll

हमारे राय घर ढोटा जायो l सुनि सब लोक बधाये आयो ll 2 ll

दूध दधि घृत कांवरि ढोरी l तंदुल डूब अलंकृत रोरी ll 3 ll

हरद दूध दधि छिरकत अंगा l लसत पीत पट बसन सुरंगा ll 4 ll

ताल पखावज दुंदुभि ढोला l हसत परस्पर करत कलोला ll 5 ll

अजिर पंक गुलफन चढि आये l रपटत फिरत पग न ठहराये ll 6 ll

वारि वारि पटभूषन दीने l लटकत फिरत महारस भीने ll 7 ll

सुधि न परे को काकी नारी l हसि हसि देत परस्पर तारी ll 8 ll

सुर विमान सब कौतिक भूले l मुदित त्रिलोक विमोहित फूले ll 9 ll


साज – श्रीजी में आज सखीभाव से खड़ी अष्टसखी के भाव से व्रज की गोपीजनों के चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया के ऊपर लाल मखमल बिछावट की जाती है तथा स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी मलमल पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, काछनी एवं गाती का पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र सफेद जामदानी (चिकन) के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला (चरणारविन्द तक) का भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे के सर्व आभरण धराये जाते हैं. कली, कस्तूरी और कमल माला धरायी जाती है.

श्रीमस्तक पर टंकमां हीरा की टोपी व मुकुट एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरे के मयुराकृति कुंडल धराये जाते हैं.

दो हार पाटन वाले धराए जाते हैं.

सफेद पुष्पों की एवं लाल गुलाब की थागवाली मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी और दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट केसरी, गोटी राग-रंग की व आरसी सोने की डांडी की आती है. श्रृंगार समय आरसी चार झाड की आती है.


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