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व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – भाद्रपद शुक्ल तृतीया

Friday, 06 September 2024


गुलाबी मलमल का पिछोड़ा एवं श्रीमस्तक पर गोल पाग पर बाँकी गोल चंद्रिका के श्रृंगार


राजभोग दर्शन -


कीर्तन – (राग : सारंग)


महारास पूरन प्रगट्यो आनि l

अति फूली घरघर व्रजनारी श्री राधा प्रगटी जानि ll 1 ll

धाई मंगल साज सबे लै महा ओच्छव मानि l

आई घर वृषभान गोप के श्रीफल सोहत पानि ll 2 ll

कीरति वदन सुधानिधि देख्यौ सुन्दर रूप बखानि l

नाचत गावत दै कर तारी होत न हरख अघानि ll 3 ll

देत असिस शीश चरनन धर सदा रहौ सुखदानि l

रसकी निधि व्रजरसिक राय सों करो सकल दुःख हानि ll 4 ll


साज - श्रीजी में आज गुलाबी मलमल की रुपहली ज़री के हांशिया (किनारी) वाली पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया सफेद एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी में आज गुलाबी मलमल का पिछोड़ा और श्रीमस्तक पर गोल पाग धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघस्याम रंग के होते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज हल्का का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फ़ीरोज़ा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर गुलाबी की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, बाँकी गोल चंद्रिका तथा बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्वेत पुष्पों की विविध रंगों की थागवाली चार मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, झीने लहरियाँ के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.


पट गुलाबी व गोटी चाँदी की आती हैं.

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