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व्रज – माघ कृष्ण प्रतिपदा

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – माघ कृष्ण प्रतिपदा

Tuesday, 14 January 2025


मलार मठा खींच को लोंदा।

जेवत नंद अरु जसुमति प्यारो जिमावत निरखत कोदा॥

माखन वरा छाछ के लीजे खीचरी मिलाय संग भोजन कीजे॥

सखन सहित मिल जावो वन को पाछे खेल गेंद की कीजे॥

सूरदास अचवन बीरी ले पाछे खेलन को चित दीजे॥


उत्तरायण पर्व मकर-संक्रांति


श्रीजी में आज रेशमी छींट के वस्त्र धराये जाते हैं.

प्रभु के समक्ष नयी गेंदे धरी जाती है. सभी समां में गेंद खेलने के पद गाये जाते हैं.


श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कट-पूवा अरोगाये जाते हैं.


राजभोग में अनसखड़ी में नियम से दाख (किशमिश) का रायता व सखड़ी में केसरी पेठा, मीठी सेव, विशेष रूप से सिद्ध सात धान्य का खींच व मूंग की द्वादशी अरोगायी जाती है. इसके साथ प्रभु को आज गेहूं का मीठा खींच भी अरोगाया जाता है.


इस अवधि में गोपीवल्लभ (ग्वाल) समय श्रीजी को तिलवा व उत्सव भोग धरे जाएंगे. इसी समयावधि में वैष्णव भी अपने सेव्य स्वरूपों को तिलवा के भोग घर सकते हैं.


उत्सव भोग में श्रीजी को तिलवा के गोद के बड़े लड्डू, श्री नवनीतप्रियाजी, श्री विट्ठलनाथजी एवं श्री द्वारकाधीश प्रभु के घर से आये तिलवा के लड्डू, दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांड़ी, विविध प्रकार के संदाना (आचार) के बटेरा एवं तले हुए बीज-चालनी के नमकीन सूखे मेवे का भोग अरोगाया जाता है.


मकर संक्रांति में श्रीजी के कीर्तन -


श्रृंगार दर्शन – (राग-धनाश्री)


तरणी तनया तीर आवत है प्रातसमें गेंद खेलत देख्योरी आनंदको कंदवा l

काछिनी किंकिणी कटि पीतांबर कस बांधे लाल उपरेना शिर मोरनके चंदवा ll


आरती दर्शन -(राग-नट)


तुम मेरी मोतीन लर क्यों तोरी ।

रहो रहो ढोटा नंदमहरके करन कहत कहा जोरी ।।१।।

में जान्यो मेरी गेंद चुराई ले कंचुकी बीच होरी ।

परमानंद मुस्काय चली तब पूरन चंद चकोरी ।।२।।


शयन - (राग-धनाश्री)


ग्वालिन तें मेरी गेंद चुराई l

खेलत आन परी पलका पर अंगिया मांझ दुराई ll 1 ll

भुज पकरत मेरी अंगिया टटोवत छुवत छतियाँ पराई l

‘सूरदास’ मोहि यहि अचंभो एक गयी द्वै पाई ll 2 ll


राजभोग दर्शन –


साज – आज श्रीजी में बड़े बूटों वाली लाल रंग की छींट की केरी भात की पिछवाई धरायी जाती है जो कि रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को लाल रंग की छींट का रुई भरा सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत लट्ठे के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज श्रीजी को छोटा (कमर तक) चार माला का हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा, मोती के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की छींट की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.

श्रीकंठ में त्रवल नहीं आवे व कंठी धरायी जाती है. सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की चार कलात्मक मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में स्वर्ण के वेणुजी एवं एक वेत्रजी (विट्ठलेशरायजी के) धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी स्याम मीना की आती हैं.

आरसी श्रृंगार में सोना की दिखाई जाती हैं.



आज शयनभोग में प्रभु को शाकघर में सिद्ध सूखे मेवे का अद्भुत खींच भी अरोगाया जाता है जो कि वर्षभर में केवल आज के दिन ही अरोगाया जाता है.

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