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व्रज – माघ शुक्ल एकादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – माघ शुक्ल एकादशी

Tuesday, 20 February 2024

जया एकादशी


श्वेत लट्ठा के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर लाल टीपारा के ऊपर केसरी गौकर्ण और सुनहरी घेरा के शृंगार


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : वसंत)


नृत्यत गावत बजावत मधुर मृदंग, सप्तस्वरन मिलि राग हिंडोल l

पंचमस्वर ले अलापत उघटत है सप्तान मान, थेईता थेईता थेई थेई कहति बोल ll 1 ll

कनकवरन टिपारो सिर कमलवदन काछनी कटि, छिरकत राधा करत कलोल l

‘कृष्णदास’ नटवर गिरिधरपिय, सुरबनिता वारत अमोल ll 2 ll


साज – आज श्रीजी में आज सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया गया है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत लट्ठा का सूथन, चोली, चाकदार वागा तथा लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे, लाल व सफ़ेद मीना तथा जड़ाव सोने के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर लाल रंग की टिपारा की टोपी के ऊपर केसरी गौकर्ण, सुनहरी चमक का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. गुलाबी, सफ़ेद एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी फागुन की आती है.


संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं.


श्रीमस्तक पर टीपारा रहे लूम तुर्रा नहीं आवे.

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