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व्रज – माघ शुक्ल पंचमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – माघ शुक्ल पंचमी

Wednesday, 14 February 2024

बसंत-पंचमी

नवल वसंत नवल वृंदावन खेलत नवल गोवर्धनधारी ।

हलधर नवल नवल ब्रजबालक नवल नवल बनी गोकुल नारी ।।१।।

नवल जमुनातट नवल विमलजल नौतन मंद सुगंध समीर ।

नवल कुसुम नव पल्लव साखा कुंजत नवल मधुप पिक कीर ।।२।।

नव मृगमद नव अरगजा वंदन नौतन अगर सुनवल अबीर ।

नवचंदन नव हरद कुंकुमा छिरकत नवल परस्पर नीर ।।३।।

नवलधेनु महुवरि बाजे, अनुपम भूषण नौतन चीर ।

नवलरूप नव कृष्णदास प्रभुको, नौतन जस गावत मुनि धीर ।।४।।

सभी वैष्णवजन को बसंतोत्सव की ख़ूबख़ूब बधाई

नियम के श्वेत अड़तु के सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं श्रीमस्तक पर श्याम खिड़की की श्वेत पाग के ऊपर सादी मोर-चंद्रिका धरायी जाती है.

आज से प्रतिदिन छोगा व श्रीहस्त में पुष्पों की छड़ी धरी जाती है.

आज से 10 दिन तक जैसे श्रृंगार हों उसी भाव के बसंत के पद गाये जाते हैं.

प्रत्येक पद बसंत राग में ही गाये जाते हैं.

श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मेवाबाटी व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग अरोगाया जाता है.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : वसंत)

श्रीपंचमी परममंगल दिन, मदन महोच्छव आज l

वसंत बनाय चली व्रजसुंदरी ले पूजा को साज ll 1 ll

कनक कलश जलपुर पढ़त रतिकाममन्त्र रसमूल l

तापर धरी रसाल मंजुरी आवृत पीत दुकूल ll 2 ll

चोवा चंदन अगर कुंकुमा नव केसर घन सार l

धुपदीप नाना निरांजन विविध भांति उपहार ll 3 ll

बाजत ताल मृदंग मुरलिका बीना पटह उमंग l

गावत वसंत मधुर सुर उपजत तानतरंग ll 4 ll

छिरकत अति अनुराग मुदित गोपीजन मदनगुपाल l

मानों सुभग कनिकदली मधि शोभित तरुन तमाल ll 5 ll

यह विधि चली रति राज वधावन सकल घोष आनंद l

‘हरिजीवन’ प्रभु गोवर्धनधर जय जय गोकुल चंद ll 6 ll

साज – आज श्रीजी में श्वेत मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.

वस्त्र – आज श्रीजी को श्वेत अड़तु का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का आता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.

श्रृंगार – आज श्रीजी में मध्य का (छेड़ान से दो अंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. फाल्गुन के माणक, स्वर्ण एवं लाल मीना के मिलवा सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर श्वेत पाग (श्याम खिड़की की) के ऊपर सिरपैंच के स्थान पर पट्टीदार जड़ाऊ कटिपेंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में चार कर्णफूल धराये जाते हैं. गुलाबी एवं पीले पुष्पों की कलात्मक थागवाली दो मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में पुष्प की छड़ी, सोना के बंटदार वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. आज विशेष रूप से श्रीमस्तक पर सिरपैंच में आम के मोड़ धराये जाते हैं.


पट चीड़ का, गोटी चांदी की व आरसी दोनो समय बड़ी डांडी की आती है.

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