व्रज– माघ शुक्ल प्रतिपदा
Thursday, 30 January 2025
पीली ज़री के चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर जमाव का क़तरा एवं रूपहरी तुर्री के शृंगार
राजभोग दर्शन –
कीर्तन – (राग : आसावरी)
प्रीत बंधी श्रीवल्लभ पदसों और न मन में आवे हो ।
पढ़ पुरान षट दरशन नीके जो कछु कोउ बतावे हो ।।१।।
जबते अंगीकार कियोहे तबते न अन्य सुहावे हो ।
पाय महारस कोन मूढ़मति जित तित चित भटकावे हो ।।२।।
जाके भाग्य फल या कलिमे शरण सोई जन आवेहो ।
नन्द नंदन को निज सेवक व्हे द्रढ़कर बांह गहावे हो ।।३।।
जिन कोउ करो भूलमन शंका निश्चय करी श्रुति गावे हो ।
"रसिक" सदा फलरूप जानके ले उछंग हुलरावे हो ।।४।।
साज – श्रीजी में आज पीली ज़री की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.
वस्त्र – श्रीजी को आज पीली ज़री का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.
श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है.पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
श्रीमस्तक पर पीली ज़री की छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, नागफणी (जमाव) का कतरा व लूम तुर्री एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.
श्रीकंठ में lश्वेत एवं पीले पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.
पट पीला व गोटी मीना की आती है.
संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.
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