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व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी (पंचमी क्षय)

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – माघ शुक्ल षष्ठी (पंचमी क्षय)

Monday, 03 February 2025

श्वेत रंग के गुलाबी आभा युक्त चाकदार वागा एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे जोड़ के ऊपर सुनहरी घेरा के शृंगार


आज श्रीजी को नियम से गुलाबी आभायुक्त चाकदार वस्त्र एवं श्रीमस्तक पर कुल्हे जोड़ के ऊपर सुनहरी घेरा धराया जाता है. यह श्रृंगार प्रतिवर्ष बसंत-पंचमी के एक दिन पश्चात नियम से होता है.

आज दो समय की आरती थाली की आती हैं.


आज से डोलोत्सव तक प्रतिदिन श्रीजी प्रभु में राजभोग दर्शन में गुलाल खेल होगा. श्री नवनीतप्रियाजी को ग्वाल व राजभोग दोनों समां में गुलाल खेलायी जाएगी. श्री नवनीतप्रियाजी में आज से डोलोत्सव तक फूल-पत्तियों का ही पलना होगा.


कीर्तन – (राग : वसंत)


बसंत अष्टपदी

हरिरिह व्रजयुवती शतसंगे ।

विलसति करिणी गणवृतवारण वर ईव रतिपति मान भंगे।।ध्रु।।

विभ्रम संभ्रम लोल विलोचन सूचित संचितभावं ।

कापिदगंचल कुवलयनिकरै रंचति तं कलराव ।।१।। हरिरिह व्रजयुवती ०

स्मित रुचि रुचि रतरानन कमलमुदीक्ष्य हरे रति कंद ।

चुंबति कापि नितंब वती करतल धृत चिबुकममंदं ।।२।। हरिरिह व्रजयुवती ०

उद् भट भाव विभावित चापल मोहन निधु वन शाली ।

रमयति कामपि पीनधनस्तन विलुलित नव वनमाली ।।३।। हरिरिह व्रजयुवती ०

निजपरिरंभकृते नुद्रुतमभिवीक्ष्य हरिंसविलासं ।

कामपिकापि बलाद करोदग्रे कुतुकेन

सहास ।।४।। हरिरिह व्रजयुवती ०

कामपि नीवीबंध विमोकस संभ्रम लज्जित नयनां ।

रमयति संप्रति सुमुखि बलादपि,

करतल धृत निज वसनां ।।५।। हरिरिह व्रजयुवती ०

पिय परिरंभ विपुल पुलकावलि

द्विगुणित सुभग शरीरा ।

उद् गायति सखि कापि समं हरिणा रति रणधीरा।।६।। हरिरिह व्रजयुवती ०

विभ्रम संभ्रम गलदंचलमल यांचित मंग मुदारं ।

पश्यति सस्मित मति विस्मित मनसा सुदेशः सविकारं।।७।।हरिरिह व्रजयुवती ०

चलति क्यापि समं सकरग्रह मल सत रंस विलासं ।

राधे तव पूरयतु मनोरथ मुदितमिदं हरिरासं।।८।।हरिरिह व्रजयुवती ०


साज – आज श्रीजी में सफ़ेद रंग की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल, चन्दन से खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को सफ़ेद रंग का, रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं लाल रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. सभी वस्त्र सुन्दर गुलाबी झाई के (आभायुक्त )होते हैं. ठाड़े वस्त्र हरे रंग के धराये जाते हैं. सभी वस्त्रों पर अबीर, गुलाल आदि की टिपकियों से कलात्मक रूप से खेल किया जाता है.


श्रृंगार – आज श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सफ़ेद कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, सुनहरी ज़री (चमक) का घेरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. बायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है.

आज अक्काजी वाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी सुन्दर थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, झिने लहरियाँ के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक सोना का) धराये जाते हैं.

पट चीड़ का एवं गोटी चांदी की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लाल कुल्हे धरायी जाती है परन्तु लूम तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.

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