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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी

Monday, 25 November 2024


प्रथम घटा (हरी)


विशेष – श्रीजी में शीतकाल में विविध रंगों की घटाओं के दर्शन होते हैं.

घटा के दिन सर्व वस्त्र, साज आदि एक ही रंग के होते हैं. आकाश में वर्षाऋतु में विविध रंगों के बादलों के गहराने से जिस प्रकार घटा बनती है उसी भाव से श्रीजी में मार्गशीर्ष व पौष मास में विविध रंगों की द्वादश घटाएँ द्वादश कुंज के भाव से होती हैं.


कई वर्षों पहले चारों यूथाधिपतिओं के भाव से चार घटाएँ होती थी परन्तु गौस्वामी वंश परंपरा के सभी तिलकायतों ने अपने-अपने समय में प्रभु के सुख एवं वैभव वृद्धि हेतु विभिन्न मनोरथ किये. इसी परंपरा को कायम रखते हुए नित्यलीलास्थ गौस्वामी तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराज ने निकुंजनायक प्रभु के सुख और आनंद हेतु सभी द्वादश कुंजों के भाव से आठ घटाएँ बढ़ाकर कुल बारह (द्वादश) घटाएँ कर दी जो कि आज भी चल रही हैं.

इनमें कुछ घटाएँ नियत दिनों पर एवं अन्य कुछ ऐच्छिक है जो खाली दिनों में ली जाती हैं.


ये द्वादश कुंज इस प्रकार है –

अरुण कुंज, हरित कुंज, हेम कुंज, पूर्णेन्दु कुंज, श्याम कुंज, कदम्ब कुंज, सिताम्बु कुंज, वसंत कुंज, माधवी कुंज, कमल कुंज, चंपा कुंज और नीलकमल कुंज.


जिस रंग की घटा हो उसी रंग के कुंज की भावना होती है. इसी श्रृंखला में हरित कुंज के भाव से आज श्रीजी में हरी घटा होगी.


इसका एक भाव और है कि प्रभु श्री श्यामसुंदर नीलवर्ण हैं और श्री स्वामिनी पीत वर्ण. दोनों वर्णों के मिलने से हरा रंग बनता हैं अतः आज सर्वप्रथम हरी घटा होती है.


साज, वस्त्र, श्रृंगार, मालाजी आदि सभी हरे रंग के होते हैं.

कीर्तन भी हरी घटा की भावना के गाये जाते हैं.


सभी घटाओं में राजभोग तक का सेवाक्रम अन्य दिनों की तुलना में काफ़ी जल्दी हो जाता है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आसावरी)


मेरो माई हरि नागर सो नेह l

एक बैर कैसे छूटत है पूरब बढ्यो सनेह ll 1 ll

अंग अंग निपुन बन्यो जदुनंदन श्याम बरन सब देह l

जबते दृष्टि परे नंद नंदन विसर्यो गेह ll 2 ll

कोऊ निंदो कोऊ वंदौ मो मन गयो संदेह l

सरिता सिंधु मिलि ‘परमानंद’ भयो एक रस नेह ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज हरे रंग के दरियाई वस्त्र की पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर हरी बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को हरे रंग के दरियाई वस्त्र का रुपहली तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार, एवं मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र भी हरे रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर हरे रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, हरा रेशम का दोहरा कतरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराया जाता है.


श्रीकर्ण में पन्ना के कर्णफूल धराये जाते हैं.

हरे रंग के पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.

श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट हरा व गोटी हरे मीना की आती है.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा रूपहरी धराये जाते हैं.

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