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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण द्वादशी

Wednesday, 27 November 2024


प्रथम द्वादशी (चोकी) के शृंगार


आज प्रभु को बैंगनी घेरदार वस्त्र पर सुनहरी ज़री की फतवी (आधुनिक जैकेट जैसी पौशाक) धरायी जाती है. प्रभु की कटि (कमर) पर एक विशेष हीरे का चपड़ास (गुंडी-नाका) श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर लूम की सुनहरी किलंगी धरायी जाती है.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : आशावरी)


व्रज के खरिक वन आछे बड्डे बगर l

नवतरुनि नवरुलित मंडित अगनित सुरभी हूँक डगर ll 1 ll

जहा तहां दधिमंथन घरमके प्रमुदित माखनचोर लंगर l

मागधसुत वदत बंदीजन जस राजत सुरपुर नगरी नगर ll 2 ll

दिन मंगल दीनि बंदनमाला भवन सुवासित धूप अगर l

कौन गिने ‘हरिदास’ कुंवर गुन मसि सागर अरु अवनी कगर ll 3 ll


साज – आज श्रीजी में बेंगनी रंग की सुनहरी ज़री की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – आज श्रीजी को बैंगनी रंग का बिना किनारी का सुसज्जित सूथन, घेरदार वागा, चोली एवं सुनहरी ज़री की फतवी (Jacket) धरायी जाती है. सुनहरी एवं बैंगनी रंग के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र श्वेत रंग के लट्ठा के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – आज प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हीरा के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर सुनहरी रंग के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, लूम की सुनहरी किलंगी एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं.आज फ़तवी धराए जाने से कटिपेच बाजु एवं पोची नहीं धरायी जाती हैं. आज प्रभु को श्रीकंठ में हीरा की कंठी धराई जाती हैं.

श्वेत एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्तं में हीरा की मुठ के एक वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट बैंगनी एवं गोटी सोना की छोटी आती हैं.

आरसी श्रृंगार में सोना की एवं राजभोग में बटदार आती हैं.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. अनोसर में श्रीमस्तक पर चीरा रहता हैं एवं आड़ी एवं ठाड़ी लड़ धरायी जाती हैं.लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

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