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व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी

Wednesday, 20 November 2024


पाछली रात के श्रृंगार


विशेष – आज श्रीजी को नियम का ‘पाछली रात का श्रृंगार’ धराया जाएगा.

इस श्रृंगार को धराये जाने का दिन नियत नहीं परंतु इन दिनों में अवश्य धराया जाता है. इस शृंगार में चीरा एवं मोजाजी सुनहरी धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर मोर चन्द्रिका एवं पिछवाई नियम के धराये जाते हैं. घेरदार वागा एवं ठाड़े वस्त्र इच्छा अनुसार धराये जासकते हैं.


ये व्रतचर्या के दिन हैं. व्रतचर्या के दिनों में गोप-कुमारियाँ प्रातः अँधेरे यमुना स्नान करने जाती हैं. प्रभु भी उनके पीछे पधारते हैं इस भावना के एक कीर्तन के आधार पर आज प्रातः श्रृंगार के दर्शन सामान्य दिनों की अपेक्षा कुछ जल्दी खोले जाते हैं.


इसी अद्भुत कीर्तन के आधार पर तत्कालीन परचारक महाराज श्री दामोदरलालजी की प्रार्थना पर तत्कालीन तिलकायत श्री गोवर्धनलालजी महाराजश्री ने आज का श्रृंगार अंगीकार कराया और तब से यह सेवाक्रम परंपरागत रूप से प्रतिवर्ष किया जाता है.


आज सभी दर्शनों में इसी भाव के कीर्तन गाये जाते हैं.

कई वर्ष पूर्व आज के दिन श्रीजी के राजभोग लगभग सात बजे के पूर्व हो चुकते थे परन्तु अब प्रभु वैभव वृद्धि के कारण राजभोग तक का सेवाक्रम नियमित दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होता है.

इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से पूज्य श्री तिलकायत की आज्ञानुसार राजभोग अन्य दिनों की तुलना में कुछ ही जल्दी होते हैं जिससे बाहर से आने वाले वैष्णव प्रभु दर्शनों से वंचित न रहें.


कीर्तन – राजभोग (राग : तोड़ी)


कछु अब कहीं ना जय तेरी ऊनकी एक बिकट बात।

आन आन प्रकृति कैसै बनि आवे जो तू डार तो हैंरी वै पात पात ।।१।।

अब कहा कहत सोई जोई कहौ प्रीतमसो छाड़ि देरी ईत ऊतकी पांच सात।

अब ऎते पर गोविंद प्रभु पिय सुमुखि मनाई लैहै बातनि बातनि भयो प्रात।।२।।


राजभोग दर्शन –


साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base) पर केले के पत्तों, गायों, मयूर तथा पुष्प-लताओं के सुन्दर ज़रदोज़ी के काम की पिछवाई धरायी जाती है. हांशिया श्याम रंग का होता है जिसमें पुष्प-लताओं का सुन्दर ज़रदोज़ी का काम किया हुआ है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज लाल साटन का रूपहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, घेरदार वागा धराये जाते हैं. सुनहरी ज़री के मोजाजी धराये जाते हैं. ठाड़े वस्त्र पीले रंग के धराये जाते हैं.


श्रृंगार – श्रीजी को आज छोटा (कमर तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. हरे मीना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

पन्ना की एक मालाजी हमेल की भांति धरायी जाती है. श्रीमस्तक पर सुनहरी चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. पीले एवं गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट लाल एवं गोटी मीना की आती हैं.



संध्या-आरती दर्शन के उपरांत श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर छेड़ान के (छोटे) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं.

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