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व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

Writer's picture: Reshma ChinaiReshma Chinai

व्रज – मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी

Thursday, 05 December 2024

शीतकाल के सेहरा को प्रथम शृंगार


मंगल भीनी प्यारी रात।

नवल रंग देखो, देखो कुंज सुहात ।।ध्रु।।

दुल्हनि प्यारी राधिका दुल्हे नंद सुजान ।

ब्याह रच्यो संकेत सदन ललिता रचित बितान ।।

चहल पहल आनंद महेलमें जों न रूप दरसात ।

दुलहनिको मुख निरखके पिय ईकटक रही जात।।

अंस भुजा कर दोऊ चलत हंसगती चाल ।

गावत मंगल रीत सों चलेहें भावते भवन ।।

कुसुम सेज विहरत दोऊ जहां न कोऊ पांस ।

यह जोरी छबी देख कें बल बल "नागरीदास"।।

मंगल भीनी प्यारी रात ।।


शीतकाल में श्रीजी को चार बार सेहरा धराया जाता है. इनको धराये जाने का दिन निश्चित नहीं है परन्तु शीतकाल में जब भी सेहरा धराया जाता है तो प्रभु को मीठी द्वादशी आरोगाई जाती हैं. आज प्रभु को साठा के रस की लापसी (द्वादशी) आरोगाई जाती हैं.


आज श्रीजी को केसरी रंग के साटन पर सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली चाकदार वागा का श्रृंगार धराया जायेगा.


राजभोग दर्शन –


कीर्तन – (राग : सारंग)


दिन दुल्है मेरो कुंवर कन्हैया l

नित उठ सखा सिंगार बनावत नितही आरती उतारत मैया ll 1 ll

नित उठ आँगन चंदन लिपावे नित ही मोतिन चौक पुरैया l

नित ही मंगल कलश धरावे नित ही बंधनवार बंधैया ll 2 ll

नित उठ व्याह गीत मंगलध्वनि नित सुरनरमुनि वेद पढ़ैया l

नित नित होत आनंद वारनिधि नित ही ‘गदाधर’ लेत बलैया ll 3 ll


साज – श्रीजी में आज लाल रंग के आधारवस्त्र (Base Fabric) पर विवाह के मंडप की ज़री के ज़रदोज़ी के काम (Work) से सुसज्जित सुन्दर पिछवाई धरायी जाती है जिसके हाशिया में फूलपत्ती का क़सीदे का काम एवं जिसके एक तरफ़ श्रीस्वामिनीजी एवं दूसरी तरफ़ श्रीयमुनाजी विवाह के सेहरा के शृंगार में विराजमान हैं. गादी, तकिया पर लाल रंग की एवं चरणचौकी पर सफ़ेद रंग की बिछावट की जाती है.


वस्त्र – श्रीजी को आज केसरी रंग का साटन का सूथन, चोली एवं चाकदार वागा धराये जाते हैं एवं केसरी मलमल का रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित अंतरवास का राजशाही पटका धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं. केसरी ज़री के मोजाजी भी धराये जाते हैं.


श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. माणक के सर्व आभरण धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर केसरी रंग के दुमाला के ऊपर हीरा का सेहरा एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

श्रीकर्ण में हीरा के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. सेहरा पर मीना की चोटी दायीं ओर धरायी जाती है.

श्रीकंठ में कस्तूरी, कली एवं कमल माला माला धरायी जाती है.

लाल एवं पीले पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है.

श्रीहस्त में कमलछड़ी, लहरिया के वेणुजी एवं वेत्रजी धराये जाते हैं.

पट केसरी एवं गोटी उत्सव की आती हैं.


संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के शृंगार सेहरा एवं श्रीकंठ के आभरण बड़े कर दिए जाते हैं पर दुमाला बड़ा नहीं किया जाता हैं और शयन दर्शन हेतु छेड़ान के श्रृंगार धराये जाते हैं.

श्रीमस्तक पर दुमाला पर टिका एवं सिरपेच धराये जाते हैं. लूम-तुर्रा नहीं धराये जाते हैं.


अनोसर में दुमाला बड़ा करके छज्जेदार पाग धरायी जाती हैं

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