श्रीमद् वल्लभाचार्य महाप्रभुजी की सादगी :-
आपके शिष्यों में अनेक राजा तथा साहुकार होनेपर भी आपका जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण था। आप शरीर पर धोती तथा उपरणा धारण करते थे। यात्रा भी आप खुल्ले चरणों से करते थे। यात्रा के समय प्रभु के लिये भोग-सामग्री बनाकर धराने का आपका नियम था। यात्रा के समय आप ज्यादातर गाँव के बाहर एकांत में मुकाम करते। जो दैवी जीव होंगे वह सामने चलकर आयेंगे, ऐसा विश्वास होने से, अपने आगमन की जानकारी गाँव में किसीको भी न देने की आज्ञा शिष्यों को करते थे। आपके प्रताप के आकर्षण से अनेक श्रद्धालु सामने चलकर मूल्यवान भेंट-सौगाद लाते होनेपर भी आप अपने शिष्यों के अतिरिक्त किसीकी भी भेंट-सौगाद स्वीकारते नहीं थे।
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