श्री यमुनाजी के जो भी प्राचीन चीत्रजी होते हे उसमे श्री यमुनाजी के श्री हस्त मे तीन कमल होतेताकी हे भावना हु अती सुंदर हे
उसमे से एक कमल की कली होती हे . . . ये कमल की कली हे वो शरण मे आये नये जीव हे जीनका नया नया मार्ग मे प्रवेश हुआ हे भक्ती रुपी बीज का रोपन हूआ हे उनका संबोधन करती हे
क्रमश दूसरा अर्ध खिला हुआ कमल हो तो हे वो जो जीव शरण मे आये हे प्रभु मे प्रीती हुई हे भाव का स्थापन हूआ हे धीरे धीरे उनका भाव हे वो प्रभु मे बढ रहा
हे पृष्टी भक्ती की पराकाष्टा की ओर वो बढ रहे . . . . पर अभी ईनकी अवस्था थोडी कच्ची हे . . . एसे जीवो का वो संबोधन करता हे
और तीसरा पूर्ण विकसीत खीला हुआ कमल जो ताद्रशी जीव हे जीनहे प्रभु मे पुर्ण प्रेम आसक्ती द्रढ विशवास प्राप्त हुआ हे जीनहे पृष्टी भक्ती सर्वोच अवस्था प्राप्त हूई हे . . . एसे जीवो का संबोधन करता हे
परम कृपालु श्री यमुना जी ये सभी कमल रूपी जीवो को अपने श्रीहस्त मे पकड कर प्रभु से सनमुख करवाते हे और प्रभु से ईन सभी जीवो का अंगीकार कर अपना ने की बींनती करते हे . .
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